शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

जनेऊ क्या है ?

जनेऊ क्या है ?
आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है। यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।
तीन सूत्र क्यों : जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है।
नौ तार : यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं।
पांच गांठ : यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है।
वैदिक धर्म में प्रत्येक आर्य का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। प्रत्येक आर्य (हिन्दू) जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे।
ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म।
लडकियों को भी जनेऊ धारण करने का अधिकार है ।
जनेऊ की लंबाई : यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है। इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विद्याएं होती है। 64 कलाओं में जैसे- वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि।
जनेऊ के नियम :
1.
यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका स्थूल भाव यह है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। अपने व्रतशीलता के संकल्प का ध्यान इसी बहाने बार-बार किया जाए।
2.
यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए। खंडित यज्ञोपवीत शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है।
3.
जन्म-मरण के सूतक के बाद इसे बदल देने की परम्परा है।
4.
यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित करें ।
5.
मर्यादा बनाये रखने के लिए उसमें चाबी के गुच्छे आदि न बांधें। इसके लिए भिन्न व्यवस्था रखें। बालक जब इन नियमों के पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका यज्ञोपवीत करना चाहिए।
* चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
* वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
* कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
* कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।
* माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है। जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।
* जनेऊ से पवित्रता का अहसास होता है। यह मन को बुरे कार्यों से बचाती है। कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से दूर रहने लगता है ।।

मौत के चार संदेश

(( मौत के चार संदेश ))
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पुराने समय में एक बहुत ही चतुर व्यक्ति रहता था जो पुरी तरह स्वार्थ और भोग विलासिता में लिप्त था। पर उस व्यक्ति को अपनी मृत्यु से बहुत डर लगता था।
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कभी एक बहुत बड़े महात्मा उसके धर आएँ। उन्होने अपने प्रवचन में कहा कि मृत्यु से पहले चार दिव्य संदेश आते है ताकि हम मरने से पहले अपनी सब ज़िम्मेवारीयों को भलीभाँति निभा पाएँ।
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ये सुनकर उस चतुर व्यक्ति के मन से मौत का भय निकल गया। उसने सोचा जैसे जैसे मृत्यु आने के संदेश आएँगे मैं मरने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण कर लुँगा।
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अपने बाल-बच्चो को कारोबार सौंप दूँगा और स्वयं समाज और देश की सेवा में लगकर अपना परलोक सुधार लुँगा।
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दिन बीतते गये उस व्यक्ति कि मृत्यु की घड़ी आ पहुँची। डाक्टरों ने जवाब दे दिया और कहा कि अब आपका बच पाना मुश्किल है।
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तब उस व्यक्ति ने महात्मा को बुलाकर धिक्कारते हुए कहा कि तुमने तो मुझे प्रवचन दिया था कि मौत आने से पहले चार दिव्य संदेश आते है ? आज मेरी मौत सामने है पर मुझे कोई संदेश नही आया।
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महात्मा हँसा कर बोला मित्र आपको भी चारों संदेश आए थे परन्तु आपने उनको सभी को न केवल नज़रअंदाज़ कर दिया बल्कि ढक कर छुपा दिया।
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वानप्रस्थ शुरू होते ही आपके काले सुन्दर बालों सफ़ेद हो गए थे। यह आने वाली विपदा का पहला संदेश था। यह आपको चेतावनी थी कि अपने जीवन को सादा करके विलासिताऔ और संभोग से मुक्त हो जाओ।
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पर इस संदेश का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ। आपने तो इस संदेश को छुपाने के लिए बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान दिखने की कोशिश करने लगे।
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आज भी वह दिव्य श्वेत संदेश आपके सिर पर काले ख़िजाब के नीचे से दिखाई दे रहे है।
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कुछ दिन बाद आपको दूसरा संदेश आपकी नेत्रों की ज्योति मंद करके भेजा गया।
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उस समय तो आपको अंतर्मुखी हो जाना चाहिए था तथा आपाधापी छोड़ कर अपने अधुरे काम है को पुरा करने में लग जाना चाहिए था।
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पर तुम तो हद करदी और आँखों पर मोटे शीशे चढ़ा करके अपनी पुरानी स्वार्थ और धन संग्रह की दिनचर्या में ही लगे रहे।
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तीसरा संदेश में ईश्वर में आपके दाँतो को हिलाया और कुछ को तोड़ दिया जिसमें आप हलका नरम और तरल भोजन खाने लगों और तुमने जबरदस्ती नकली दाँत लगवाये और संसार के स्वादिष्ट भोजन और भोग विलास में निरंतर लिप्त रहे।
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इस संदेश के बाद तो आपको देश और समाज सेवा में लग जाना चाहिए था।
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अन्तिम संदेश के रूप में रोग तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु आपने योग और परहेज़ पूर्वक सात्विक जीवन शैली को नही अपनाया और पीड़ा नाशक दवाईयाँ ले कर अपने जंजर शरीर को अपनी लालसा पुर्ति करने के लिए ढोते रहे।
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मेरे बताएँ अनुसार आपको चार संदेश आएँ पर आपने इन दिव्य संदेश को दबाने के लिए एक बनावटी रास्ता तैयार कर लिया।
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जब उस चतुर मनुष्य ने काल के चार संदेशों को समझा तो वह फूट-फूट कर रोने लगा और अपनी नादानी पर पश्चाताप करने लगा।
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उसने स्वीकार किया कि मैंने इन दिव्य चेतावनी भरे इन संदेशों को नहीं समझा।
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वह सदा यही सोचता रहा कि अभी क्या जल्दी है अभी कुछ और वासना भोग लूँ, कुछ और धंमड पुरा कर लूँ, कुछ और प्रतिस्पर्धा कर लूँ, कुछ और प्रोपर्टी ख़रीद लूँ। अभी क्या ज़ल्दी है देश के बारे में समाज के बारे में सोचने कि।
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मरने से कुछ दिन पहले तक भगवान का भजन करूँगा कुछ दान पुण्य करके अपना जीवन धन्य कर लुँगा।
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इस पर महात्मा ने कहा आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग-द्वेष, स्वार्थ और भोगों के लिए किया।
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जो भी जान-बूझकर सृष्टि के दिव्य नियमों को जो तोड़ता है, वह अक्षम्य है।
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अब तुम्हारी करोड़ों की सम्पत्ति का कोई लाभ नही है।
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वह चतुर मनुष्य अपने सामने खड़ी मौत को देख कर हाय-हाय करके रोने लगा और सभी सम्बन्धियों को पुकारने लगा पर उसकी मदद के लिए कोई नही आया। अतंत: काल ने उसके प्राण हर लिए।
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यदि हम सहज मृत्यु और मोक्ष चाहते हैं तों इन दिव्य संदेशों के मिलते ही हम "मैं और मेरा" के कुचक्र से निकल कर अपने जीवन में निस्वार्थ जनसेवा, आचरण मे सच्चाई और अपनी दिनचर्या में योग, प्रणायाम, आयुर्वेद को अपनाये।

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