(( मौत के चार संदेश ))
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पुराने समय में एक बहुत ही चतुर व्यक्ति रहता था जो पुरी तरह स्वार्थ और भोग विलासिता में लिप्त था। पर उस व्यक्ति को अपनी मृत्यु से बहुत डर लगता था।
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कभी एक बहुत बड़े महात्मा उसके धर आएँ। उन्होने अपने प्रवचन में कहा कि मृत्यु से पहले चार दिव्य संदेश आते है ताकि हम मरने से पहले अपनी सब ज़िम्मेवारीयों को भलीभाँति निभा पाएँ।
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ये सुनकर उस चतुर व्यक्ति के मन से मौत का भय निकल गया। उसने सोचा जैसे जैसे मृत्यु आने के संदेश आएँगे मैं मरने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण कर लुँगा।
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अपने बाल-बच्चो को कारोबार सौंप दूँगा और स्वयं समाज और देश की सेवा में लगकर अपना परलोक सुधार लुँगा।
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दिन बीतते गये उस व्यक्ति कि मृत्यु की घड़ी आ पहुँची। डाक्टरों ने जवाब दे दिया और कहा कि अब आपका बच पाना मुश्किल है।
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तब उस व्यक्ति ने महात्मा को बुलाकर धिक्कारते हुए कहा कि तुमने तो मुझे प्रवचन दिया था कि मौत आने से पहले चार दिव्य संदेश आते है ? आज मेरी मौत सामने है पर मुझे कोई संदेश नही आया।
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महात्मा हँसा कर बोला मित्र आपको भी चारों संदेश आए थे परन्तु आपने उनको सभी को न केवल नज़रअंदाज़ कर दिया बल्कि ढक कर छुपा दिया।
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वानप्रस्थ शुरू होते ही आपके काले सुन्दर बालों सफ़ेद हो गए थे। यह आने वाली विपदा का पहला संदेश था। यह आपको चेतावनी थी कि अपने जीवन को सादा करके विलासिताऔ और संभोग से मुक्त हो जाओ।
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पर इस संदेश का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ। आपने तो इस संदेश को छुपाने के लिए बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान दिखने की कोशिश करने लगे।
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आज भी वह दिव्य श्वेत संदेश आपके सिर पर काले ख़िजाब के नीचे से दिखाई दे रहे है।
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कुछ दिन बाद आपको दूसरा संदेश आपकी नेत्रों की ज्योति मंद करके भेजा गया।
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उस समय तो आपको अंतर्मुखी हो जाना चाहिए था तथा आपाधापी छोड़ कर अपने अधुरे काम है को पुरा करने में लग जाना चाहिए था।
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पर तुम तो हद करदी और आँखों पर मोटे शीशे चढ़ा करके अपनी पुरानी स्वार्थ और धन संग्रह की दिनचर्या में ही लगे रहे।
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तीसरा संदेश में ईश्वर में आपके दाँतो को हिलाया और कुछ को तोड़ दिया जिसमें आप हलका नरम और तरल भोजन खाने लगों और तुमने जबरदस्ती नकली दाँत लगवाये और संसार के स्वादिष्ट भोजन और भोग विलास में निरंतर लिप्त रहे।
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इस संदेश के बाद तो आपको देश और समाज सेवा में लग जाना चाहिए था।
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अन्तिम संदेश के रूप में रोग तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु आपने योग और परहेज़ पूर्वक सात्विक जीवन शैली को नही अपनाया और पीड़ा नाशक दवाईयाँ ले कर अपने जंजर शरीर को अपनी लालसा पुर्ति करने के लिए ढोते रहे।
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मेरे बताएँ अनुसार आपको चार संदेश आएँ पर आपने इन दिव्य संदेश को दबाने के लिए एक बनावटी रास्ता तैयार कर लिया।
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जब उस चतुर मनुष्य ने काल के चार संदेशों को समझा तो वह फूट-फूट कर रोने लगा और अपनी नादानी पर पश्चाताप करने लगा।
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उसने स्वीकार किया कि मैंने इन दिव्य चेतावनी भरे इन संदेशों को नहीं समझा।
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वह सदा यही सोचता रहा कि अभी क्या जल्दी है अभी कुछ और वासना भोग लूँ, कुछ और धंमड पुरा कर लूँ, कुछ और प्रतिस्पर्धा कर लूँ, कुछ और प्रोपर्टी ख़रीद लूँ। अभी क्या ज़ल्दी है देश के बारे में समाज के बारे में सोचने कि।
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मरने से कुछ दिन पहले तक भगवान का भजन करूँगा कुछ दान पुण्य करके अपना जीवन धन्य कर लुँगा।
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इस पर महात्मा ने कहा आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग-द्वेष, स्वार्थ और भोगों के लिए किया।
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जो भी जान-बूझकर सृष्टि के दिव्य नियमों को जो तोड़ता है, वह अक्षम्य है।
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अब तुम्हारी करोड़ों की सम्पत्ति का कोई लाभ नही है।
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वह चतुर मनुष्य अपने सामने खड़ी मौत को देख कर हाय-हाय करके रोने लगा और सभी सम्बन्धियों को पुकारने लगा पर उसकी मदद के लिए कोई नही आया। अतंत: काल ने उसके प्राण हर लिए।
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यदि हम सहज मृत्यु और मोक्ष चाहते हैं तों इन दिव्य संदेशों के मिलते ही हम "मैं और मेरा" के कुचक्र से निकल कर अपने जीवन में निस्वार्थ जनसेवा, आचरण मे सच्चाई और अपनी दिनचर्या में योग, प्रणायाम, आयुर्वेद को अपनाये।
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पुराने समय में एक बहुत ही चतुर व्यक्ति रहता था जो पुरी तरह स्वार्थ और भोग विलासिता में लिप्त था। पर उस व्यक्ति को अपनी मृत्यु से बहुत डर लगता था।
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कभी एक बहुत बड़े महात्मा उसके धर आएँ। उन्होने अपने प्रवचन में कहा कि मृत्यु से पहले चार दिव्य संदेश आते है ताकि हम मरने से पहले अपनी सब ज़िम्मेवारीयों को भलीभाँति निभा पाएँ।
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ये सुनकर उस चतुर व्यक्ति के मन से मौत का भय निकल गया। उसने सोचा जैसे जैसे मृत्यु आने के संदेश आएँगे मैं मरने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण कर लुँगा।
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अपने बाल-बच्चो को कारोबार सौंप दूँगा और स्वयं समाज और देश की सेवा में लगकर अपना परलोक सुधार लुँगा।
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दिन बीतते गये उस व्यक्ति कि मृत्यु की घड़ी आ पहुँची। डाक्टरों ने जवाब दे दिया और कहा कि अब आपका बच पाना मुश्किल है।
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तब उस व्यक्ति ने महात्मा को बुलाकर धिक्कारते हुए कहा कि तुमने तो मुझे प्रवचन दिया था कि मौत आने से पहले चार दिव्य संदेश आते है ? आज मेरी मौत सामने है पर मुझे कोई संदेश नही आया।
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महात्मा हँसा कर बोला मित्र आपको भी चारों संदेश आए थे परन्तु आपने उनको सभी को न केवल नज़रअंदाज़ कर दिया बल्कि ढक कर छुपा दिया।
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वानप्रस्थ शुरू होते ही आपके काले सुन्दर बालों सफ़ेद हो गए थे। यह आने वाली विपदा का पहला संदेश था। यह आपको चेतावनी थी कि अपने जीवन को सादा करके विलासिताऔ और संभोग से मुक्त हो जाओ।
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पर इस संदेश का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ। आपने तो इस संदेश को छुपाने के लिए बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान दिखने की कोशिश करने लगे।
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आज भी वह दिव्य श्वेत संदेश आपके सिर पर काले ख़िजाब के नीचे से दिखाई दे रहे है।
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कुछ दिन बाद आपको दूसरा संदेश आपकी नेत्रों की ज्योति मंद करके भेजा गया।
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उस समय तो आपको अंतर्मुखी हो जाना चाहिए था तथा आपाधापी छोड़ कर अपने अधुरे काम है को पुरा करने में लग जाना चाहिए था।
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पर तुम तो हद करदी और आँखों पर मोटे शीशे चढ़ा करके अपनी पुरानी स्वार्थ और धन संग्रह की दिनचर्या में ही लगे रहे।
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तीसरा संदेश में ईश्वर में आपके दाँतो को हिलाया और कुछ को तोड़ दिया जिसमें आप हलका नरम और तरल भोजन खाने लगों और तुमने जबरदस्ती नकली दाँत लगवाये और संसार के स्वादिष्ट भोजन और भोग विलास में निरंतर लिप्त रहे।
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इस संदेश के बाद तो आपको देश और समाज सेवा में लग जाना चाहिए था।
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अन्तिम संदेश के रूप में रोग तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु आपने योग और परहेज़ पूर्वक सात्विक जीवन शैली को नही अपनाया और पीड़ा नाशक दवाईयाँ ले कर अपने जंजर शरीर को अपनी लालसा पुर्ति करने के लिए ढोते रहे।
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मेरे बताएँ अनुसार आपको चार संदेश आएँ पर आपने इन दिव्य संदेश को दबाने के लिए एक बनावटी रास्ता तैयार कर लिया।
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जब उस चतुर मनुष्य ने काल के चार संदेशों को समझा तो वह फूट-फूट कर रोने लगा और अपनी नादानी पर पश्चाताप करने लगा।
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उसने स्वीकार किया कि मैंने इन दिव्य चेतावनी भरे इन संदेशों को नहीं समझा।
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वह सदा यही सोचता रहा कि अभी क्या जल्दी है अभी कुछ और वासना भोग लूँ, कुछ और धंमड पुरा कर लूँ, कुछ और प्रतिस्पर्धा कर लूँ, कुछ और प्रोपर्टी ख़रीद लूँ। अभी क्या ज़ल्दी है देश के बारे में समाज के बारे में सोचने कि।
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मरने से कुछ दिन पहले तक भगवान का भजन करूँगा कुछ दान पुण्य करके अपना जीवन धन्य कर लुँगा।
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इस पर महात्मा ने कहा आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग-द्वेष, स्वार्थ और भोगों के लिए किया।
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जो भी जान-बूझकर सृष्टि के दिव्य नियमों को जो तोड़ता है, वह अक्षम्य है।
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अब तुम्हारी करोड़ों की सम्पत्ति का कोई लाभ नही है।
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वह चतुर मनुष्य अपने सामने खड़ी मौत को देख कर हाय-हाय करके रोने लगा और सभी सम्बन्धियों को पुकारने लगा पर उसकी मदद के लिए कोई नही आया। अतंत: काल ने उसके प्राण हर लिए।
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यदि हम सहज मृत्यु और मोक्ष चाहते हैं तों इन दिव्य संदेशों के मिलते ही हम "मैं और मेरा" के कुचक्र से निकल कर अपने जीवन में निस्वार्थ जनसेवा, आचरण मे सच्चाई और अपनी दिनचर्या में योग, प्रणायाम, आयुर्वेद को अपनाये।
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