बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

महालक्ष्मी स्तुति

महालक्ष्मी स्तुति

नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥१॥

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥२॥

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयङ्करि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥३॥

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥४॥

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥५॥

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥६॥

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्म स्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मत् महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥७॥

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्सि्थते जगन्मत् महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥८॥

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्ति मान्नरः॥
सर्वसिद्धिमवापनेति राज्यम् प्रापनेति सर्वदा॥९॥

एककाले पठेन्नित्यम् महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यम् धनधान्यसमन्वित॥१०॥

त्रिकालं य: पठेन्नित्यम् महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्म् प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
 
|| इति महालक्ष्मी स्तुति सम्पूर्ण ||

 
उपरोक्त स्तुति का प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है,  शत्रुओं का नाश होता हैं एवं उसे जीवन मे सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती हे ।

बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

॥ शान्ति मंत्र॥

॥ शान्ति मंत्र॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्तिः। वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्तिः॥
इस मंत्र के प्रति दिन कम से कम एक बार जाप से मनुष्य को सभी प्रकार से शांति प्राप्त होती है।

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

दया कर दान भक्ति का

दया कर दान भक्ति का
दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना

हमारे ध्यान में आओ, प्रभु आखों में बस जाओ
अंधेरे दिल में आ कर के परम् ज्योति जगा देना

बहा दो प्रेम की गंगा, दिलों में प्रेम का सागर
हमें आपस में मिलजुल कर, प्रभु रहना सिखा देना

हमारा कर्म हो सेवा, हमारा धर्म हो सेवा
सदा ईमान हो सेवा, वो सेवकचर बना देना

वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना
वतन पर जाँ फ़िदा करना प्रभु हमको सिखा देना

दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

द्वादश नामावली

प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती।
तृतीयं शारदा देवी चतुर्थ हंस वाहिनी।।
पञ्चम जगतीख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा।
सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमें ब्रह्मचारिणी।।
नवमं बुद्धिदात्री च दशमं वरदायिनी।
एकादशं चन्द्रकान्ति द्वादशं भुवनेश्वरी।।
द्वादशैतानि नामानी त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।
जिह्वाग्रे वसते नित्यं ब्रह्मरूपा सरस्वती ।।

बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

॥श्री रामायन आरति॥

॥श्री रामायन आरति॥

आरति श्रीरामायनजी की।
कीरति कलित ललित सिय पी की॥

गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद। बालमीक बिग्यान-बिसारद॥
सुक सनकादि सेष अरु सारद। बरनि पवनसुत कीरति नीकी॥१॥

गावत बेद पुरान अष्टदस। छहो सास्त्र सब ग्रन्थन को रस॥
मुनि जन धन संतन को सरबस। सार अंस संमत सबही की॥३॥

गावत संतत संभु भवानी। अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी॥
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी। काकभुसुंडि गरुड के ही की॥२॥

कलि मल हरनि विषय रस फीकी। सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की॥
दलन रोग भव मूरि अमी की। तात मात सब बिधि तुलसी की॥४॥

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

हनुमान चालीसा

||  हनुमान चालीसा ||

||  दोहा ||
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

||  चौपाई ||

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ ॥१॥

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥ ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥ ॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥ ॥४॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।। ॥५॥

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥ ॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥ ॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥ ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ ॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥ ॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥ ॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥ ॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ ॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥ ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥ ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥ ॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥ ॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥ ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥ ॥२१॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥ ॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥ ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥ ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ ॥२५॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥ ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥ ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥ ॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥ ॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥ ॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥ ॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥ ॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥ ॥३३॥

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥ ॥३४॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥ ॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥ ॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥ ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥ ॥४०॥

||  दोहा ||

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

|  इति श्री हनुमान चालीसा सम्पूर्ण |

उदेश्य

प्रिय आत्मिय
बंधु/ बहिन
जय गुरुदेव
जहाँ आधुनिक विज्ञान समाप्त हो जाता है। वहां आध्यात्मिक ज्ञान प्रारंभ हो जाता है, भौतिकता का आवरण ओढे व्यक्ति जीवन में हताशा और निराशा में बंध जाता है, और उसे अपने जीवन में गतिशील होने के लिए मार्ग प्राप्त नहीं हो पाता क्योकि भावनाए हि भवसागर है, जिसमे मनुष्य की सफलता और असफलता निहित है। उसे पाने और समजने का सार्थक प्रयास ही श्रेष्ठकर सफलता है। सफलता को प्राप्त करना आप का भाग्य ही नहीं अधिकार है। ईसी लिये हमारी शुभ कामना सदैव आप के साथ है।

रविवार, 7 फ़रवरी 2016

शिवजी की आरती 

निराश नहीं करते बस एक बार सचे मन से भोले शंकर से फ़रियाद करो

शिवजी की आरती 
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

!! जय भोले जय भंडारी तेरी है महिमा न्यारी 

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से निकले 

श्री गंगा जी का तट हो,
यमुना का वंशीवट हो
मेरा सांवरा निकट हो
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

पीताम्बरी कसी हो
छवि मन में यह बसी हो
होठों पे कुछ हसी हो
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

श्री वृन्दावन का स्थल हो
मेरे मुख में तुलसी दल हो
विष्णु चरण का जल हो
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

जब कंठ प्राण आवे
कोई रोग ना सतावे
यम दर्शना दिखावे
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

उस वक़्त जल्दी आना
नहीं श्याम भूल जाना
राधा को साथ लाना
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

सुधि होवे नाही तन की
तैयारी हो गमन की
लकड़ी हो ब्रज के वन की
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

एक भक्त की है अर्जी
खुदगर्ज की है गरजी
आगे तुम्हारी मर्जी
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

ये नेक सी अरज है
मानो तो क्या हरज है
कुछ आप का फरज है
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

भजन - दुख हरो द्वारिकानाथ

तुम कहाँ छुपे भगवान करो मत देरी |
दुख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ||

यही सुना है दीनबन्धु तुम सबका दुख हर लेते |
जो निराश हैं उनकी झोली आशा से भर देते ||
अगर सुदामा होता मैं तो दौड़ द्वारका आता |
पाँव आँसुओं से धो कर मैं मन की आग बुझाता ||
तुम बनो नहीं अनजान, सुनो भगवान, करो मत देरी |
दुख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ||

जो भी शरण तुम्हारी आता, उसको धीर बंधाते |
नहीं डूबने देते दाता, नैया पार लगाते ||
तुम न सुनोगे तो किसको मैं अपनी व्यथा सुनाऊँ |
द्वार तुम्हारा छोड़ के भगवन और कहाँ मैं जाऊँ ||
प्रभु कब से रहा पुकार, मैं तेरे द्वार, करो मत देरी |
दुख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ||

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

भजन: ऐसा प्यार बहा दे मैया

भजन: ऐसा प्यार बहा दे मैया

या देवी सर्वभूतेषू दयारूपेण संस्तत,
नमस्तस्यै नमस्तयै नमस्तयै, नमस्तस्यै नमो नमः ।।

ऐसा प्यार बहा दे मैया, चरणों से लग जाऊ मैं ।
सब अंधकार मिटा दे मैया, दरस तेरा कर पाऊं मैं ।।

जग मैं आकर जग को मैया, अब तक न मैं जान सका
क्यों आया हूँ कहाँ है जाना, अब तक न पहचान सका
तुम हो अगम अगोचर मैया, कहो कैसे लख पाऊं मैं ?

कर कृपा जगदम्बे भवानी, मैं बालक नादान हूँ
नहीं आराधन जप तप जानूं, मैं अवगुण की खान हूँ
दे ऐसा वरदान हे मैया, निशदिन तुम गुण गाऊं मैं ।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

आरती: जगजननी जय जय


जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी ..
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी ..
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी ..
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी ..
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी ..
राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥ जगजननी ..
दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥ जगजननी ..
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी ..
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥ जगजननी ..
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥ जगजननी ..
मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥ जगजननी ..
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ जगजननी ..
हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥ जगजननी ..
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥ जगजननी .. (2)