प्रिय आत्मिय
बंधु/ बहिन
जय गुरुदेव
जहाँ आधुनिक विज्ञान समाप्त हो जाता है। वहां आध्यात्मिक ज्ञान प्रारंभ हो जाता है, भौतिकता का आवरण ओढे व्यक्ति जीवन में हताशा और निराशा में बंध जाता है, और उसे अपने जीवन में गतिशील होने के लिए मार्ग प्राप्त नहीं हो पाता क्योकि भावनाए हि भवसागर है, जिसमे मनुष्य की सफलता और असफलता निहित है। उसे पाने और समजने का सार्थक प्रयास ही श्रेष्ठकर सफलता है। सफलता को प्राप्त करना आप का भाग्य ही नहीं अधिकार है। ईसी लिये हमारी शुभ कामना सदैव आप के साथ है।
मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016
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