गुरुवार, 26 जनवरी 2017

नैया पार लगाबु

नैया पार लगाबु यौ बाबा देवकुली के द्रव्येश्वर

नैया पार लगाबु यौ बाबा देवकुली के द्रव्येश्वर नैया पार लगाबु यौ-4

नहि हम जानल जप तप पूजा नहि जानल हम सेवा
हर हर -2
मुख सँ नाम अहाँ के नैऽ लेलौं-2 नेत्र देखल नैऽ देवा
नैया पार लगाबु यौ बाबा देवकुली के द्रव्येश्वर•••••

बालापन तरूणापन बितल अंत समय आब आयल
हर हर -2
झटपट प्राण करै एही तन में-2 तन मन सँ छी घायल नैया पार लगाबु यौ बाबा देवकुली के द्रव्येश्वर•••••

भव सागर  के बीच डुबल छी नहीं अछि  सँग में खेबा
हर हर -2
आश निराश भेल छी हम सब-2 ताकु एक बेर देबा
नैया पार लगाबु यौ बाबा देवकुली के द्रव्येश्वर•••••

महावीर कर जोरी पुकारै भ्रवर रुप भय गेला
हर हर -2
एहि संसार  असार जगत मे-2 रौशन भेल अकेला
नैया पार लगाबु यौ बाबा देवकुली के द्रव्येश्वर•••••
 
नैया पार लगाबु यौ बाबा देवकुली के द्रव्येश्वर नैया पार लगाबु यौ-4

शनिवार, 21 जनवरी 2017

*सुबह के स्नान को धर्म शास्त्र में चार उपनाम दिए है ।*

*सुबह के स्नान को धर्म शास्त्र में चार उपनाम दिए है ।*

1    मुनि स्नान ।
जो सुबह 4 से 5 के बिच किया जाता है ।🙏🏻

2   देव स्नान ।
जो सुबह 5 से 6 के बिच किया जाता है ।

🙏🏻3   मानव स्नान  ।
जो सुबह 6 से 8 क बिच किया जाता है ।

🙏🏻 4  राक्षसी स्नान  ।
जो सुबह 8 के बाद किया जाता है  ।

🙏🏻🌹मुनि स्नान सर्वोत्तम है ।
🙏🏻🌹देव स्नान उत्तम है ।
🙏🏻🌹मानव स्नान समान्य है ।
🙏🏻🌹राक्षसी स्नान धर्म में निषेध है ।

🙏🏻किसी भी मानवी को 8 बजे के बाद स्नान नही करना चाहिए।(यानि की 8 बजे के पहले स्नान कर लेना चाहिए)🌹

🙏🏻मुनि स्नान .......
👉🏻घर में सुख , शांति , समृद्धि, विध्या , बल , आरोग्य , चेतना , प्रदान करता है ।

🙏🏻 देव स्नान ......

👉🏻 आप के जीवन में यश , किर्ती , धन वैभव, सुख , शान्ति, संतोष , प्रदान करता है ।

🙏🏻 मानव स्नान..... 

👉🏻काम में सफलता , भाग्य ,अच्छे कर्मो की सूझ ,परिवार में एकता , मंगल मय , प्रदान करता है ।

🙏🏻 राक्षसी स्नान.....

👉🏻 दरिद्रता , हानि , कलेश , धन हानि , परेशानी, प्रदान करता है ।

किसी भी मनुष्य  को  8  के बाद स्नान नही करना  चाहिए। (यानि की 8 बजे के पहले स्नान कर लेना चाहिए)

पुराने जमाने में इसी लिए सभी सूरज निकलने से पहले स्नान  करते थे ।
खास कर जो घर की स्त्री होती थी ।

🙏🏻चाहे वो स्त्री  👉🏻माँ के रूप में हो, पत्नी के रूप में हो, बेहन के रूप में हो ।

🙏🏻घर के बडे बुजुर्ग यही समझाते सूरज के निकलने से पहले ही स्नान हो जाना चाहिए ।

🙏🏻ऐसा करने से धन , वैभव लक्ष्मी , आप के घर में सदैव वास करती है ।

🙏🏻उस समय......  एक मात्र व्यक्ति की कमाई से पूरा हरा भरा पारिवार  पल जाता था , और आज मात्र पारिवार में चार सदस्य भी कमाते है तो भी पूरा नही होता ।

🙏🏻 उस की वजह हम खुद ही है । पुराने नियमो को तोड़ कर अपनी सुख सुविधा के लिए नए नियम बनाए है ।

🙏🏻प्रकृति ......का नियम है, जो भी उस के नियमो का पालन नही करता , उस का दुष्टपरिणाम सब को मिलता है ।

🙏🏻अपने जीवन में कुछ नियमो को अपनाये ओर उन का पालन भी करे ।

🙏🏻👉🏻आप का भला हो , आपके  अपनों का भला हो ।

🙏🏻 मनुष्य अवतार बार बार नही मिलता ।

🙏🏻 अपने जीवन को सुखमय बनाये  ।
🙏🏻 जीवन जीने के कुछ जरूरी नियम बनाये ।

बुधवार, 18 जनवरी 2017

माथे पर तिलक लगाने का क्या महत्व है?

माथे पर तिलक लगाने का क्या महत्व है?

भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा शायद ही कहीं और भी प्रचलित हो। यह हिन्दू रीति रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि स्नान के ठीक पश्चात यदि तिलक लगाया जाए तो काफी शुभ माना जाता है। भारत की पौराणिक नगरी कहलाने वाली काशी के संगम तट पर लोग स्नान करने के बाद संतों से तिलक जरूर करवाते हैं। कहते हैं कि संगम तट पर गंगा स्नान के बाद तिलक लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। किसी के माथे पर तिलक लगा देखकर मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर टीका लगाने से फायदा क्या है? क्या यह महज दूसरों के सामने दिखावे के मकसद से किया जाता है या फिर तिलक धारण का कुछ वैज्ञानिक आधार भी है? दरअसल, टीका लगाने के पीछे आध्यात्मिक भावना के साथ-साथ दूसरे तरह के लाभ की कामना भी होती है। भारतीय धर्म में जब भी कोई धार्मिक कार्य, शुभ काम, यात्रा किया जाना होता है तब उसमे सिद्धि प्राप्त करने के लिए तिलक संस्कार किया जाता है। सिर पर तिलक लगाकर इस कार्य की शुभ सिद्धि के लिए कामना की जाती है। आम तौर पर चंदन, कुमकुम, मिट्टी, हल्दी, भस्म आदि का तिलक लगाने का विधान है। अगर कोई तिलक लगाने का लाभ तो लेना चाहता है, पर दूसरों को यह दिखाना नहीं चाहता, तो शास्त्रों में इसका भी उपाय बताया गया है। कहा गया है कि ऐसी स्थिति में ललाट पर जल से तिलक लगा लेना चाहिए। इससे लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर कुछ लाभ बड़ी आसानी से मिल जाते हैं। ललाट में टिका या तिलक जिस स्थान पर लगाया जाता है, वह भ्रू-मध्य या आज्ञाचक्र है। शरीरशास्त्र की दृष्टि से यह स्थान पीनियल ग्रंथि का है। प्रयोगो द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकाश से गहरा संबंध हे। आज्ञा चक्र ज्ञान का सबसे बड़ा केंद्र है जो चिंतन मनन में सबसे सक्रिय है। यह जगह जागृत एवं सक्रिय है चाहे हम चेतन अवस्था में हो या अवचेतन अवस्था में। इस जगह के दाई तरफ अजिमा नाड़ी और बाई तरफ वर्णा नाड़ी होती है। इसलिए तिलक लगाना सिर्फ रूढ़ीवाद या अन्धविश्वास नहीं बल्कि इसके वैज्ञानिक कारण भी है। तिलक लगाने के ये हैं जबरदस्त फायदे :
1. तिलक करने से व्व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है। दरअसल, तिलक लगाने का मनोवैज्ञानिक असर होता है, क्योंकि इससे व्व्यक्ति के आत्मविश्वास और आत्मबल में भरपूर इजाफा होता है।
2. आज्ञा चक्र पे तिलक करने से आज्ञाचक्र को नियमित रुप से उत्तेजना मिलती रहती है। इससे सजग रुप में हम भले ही उससे जागरण के प्रति अनभिज्ञ रहें, पर अनावरण का वह क्रम हनवरत चलता रहता है। मनुष्य उर्जावान, तनावमुक्त, दूरदर्शी, विवेकशील होता है। उसकी समझ अन्यो की तुलना में अधिक होती है।
3. दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है। यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है।
4. इससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है।
5. हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है। हल्दी में एंटी बेक्ट्रियल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है।
6. धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंदन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है। लोग कई तरह के संकट से बच जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है।
7. माना जाता है कि चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न-धन से भरा रहता है और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।
8. स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं। यह भी बिना प्रयोजन नहीं है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है।
9. ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है। लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं। यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है।

सोमवार, 16 जनवरी 2017

जनेऊ पहनने के लाभ

जनेऊ पहनने के लाभ

पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप सी गयी है। जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। विवाह से पूर्व तीन धागों की तथा विवाहोपरांत छह धागों की जनेऊ धारण की जाती है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था। मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।

यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है। इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है। शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक स्थित होती है। यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है। इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है। यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता। अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसका मात्र एहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से परावृत्त होने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो कोई आश्यर्च नहीं है। इसीलिए सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है। यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए। शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है। आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अगि्न, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है। यदि ऎसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा जाए तो अशुचित्व नहीं रहता।

यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) शब्द के दो अर्थ हैं-
उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। जनेऊ पहनाने का संस्कार

सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। यज्ञ द्वारा संस्कार किया गया उपवीत, यज्ञसूत्र या जनेऊ

यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं । ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण किये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता। यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

जनेऊ को लेकर लोगों में कई भ्रांति मौजूद है| लोग जनेऊ को धर्म से जोड़ दिए हैं जबकि सच तो कुछ और ही है| तो आइए जानें कि सच क्या है? जनेऊ पहनने से आदमी को लकवा से सुरक्षा मिल जाती है| क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दाँत पर दाँत बैठा कर रहना चाहिए अन्यथा अधर्म होता है| दरअसल इसके पीछे साइंस का गहरा रह्स्य छिपा है| दाँत पर दाँत बैठा कर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता| आदमी को दो जनेऊ धारण कराया जाता है, एक पुरुष को बताता है कि उसे दो लोगों का भार या ज़िम्मेदारी वहन करना है, एक पत्नी पक्ष का और दूसरा अपने पक्ष का अर्थात् पति पक्ष का| अब एक एक जनेऊ में 9 - 9 धागे होते हैं| जो हमें बताते हैं कि हम पर पत्नी और पत्नी पक्ष के 9 - 9 ग्रहों का भार ये ऋण है उसे वहन करना है| अब इन 9 - 9 धांगों के अंदर से 1 - 1 धागे निकालकर देंखें तो इसमें 27 - 27 धागे होते हैं| अर्थात् हमें पत्नी और पति पक्ष के 27 - 27 नक्षत्रों का भी भार या ऋण वहन करना है| अब अगर अंक विद्या के आधार पर देंखे तो 27+9 = 36 होता है, जिसको एकल अंक बनाने पर 36 = 3+6 = 9 आता है, जो एक पूर्ण अंक है| अब अगर इस 9 में दो जनेऊ की संख्या अर्थात 2 और जोड़ दें तो 9 + 2 = 11 होगा जो हमें बताता है की हमारा जीवन अकेले अकेले दो लोगों अर्थात् पति और पत्नी ( 1 और 1 ) के मिलने सेबना है | 1 + 1 = 2 होता है जो अंक विद्या के अनुसार चंद्रमा का अंक है और चंद्रमा हमें शीतलता प्रदान करता है| जब हम अपने दोनो पक्षों का ऋण वहन कर लेते हैं तो हमें अशीम शांति की प्राप्ति हो जाती है|

यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत। अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता है। हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें। इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है। दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है। मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है। दाएं कान को ब्रमह सूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है। यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है। यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो दायां कान ब्रसूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है।
बिस्तर में पेशाब करने वाले लडकों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक जाती है। किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान पकडने से वह उसी क्षण नरम हो जाता है। अंडवृद्धि के सात कारण हैं। मूत्रज अंडवृद्धि उनमें से एक है। दायां कान सूत्रवेष्टित होने पर मूत्रज अंडवृद्धि का प्रतिकार होता है। इन सभी कारणों से मूत्र तथा पुरीषोत्सर्ग करते समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय आज्ञा है।

मांग में सिंदूर क्यों लगाया जाता हैं

मांग में सिंदूर क्यों लगाया जाता हैं

मांग में सिंदूर क्यों भरा जाता हैं (Why Are the Ladies Fill Hairline Sindoor )

सिंदूर किसी भी सुहागन स्त्री के 16 सिंगार में से एक होता हैं. जिसका उसके जीवन में बहुत ही महत्व हैं. सिंदूर सुहागन के सुहाग का प्रतीक माना जाता हैं. इसलिए विवाहित स्त्री के लिए सिंदूर अमूल्य एवं परम आवश्यक होता हैं. लेकिन प्राचीन काल की तुलना में आज के आधुनिक युग में मांग में सिंदूर भरने का प्रचलन कम हो गया हैं. फैशन के दौर में विवाहित स्त्रियाँ मांग में सिंदूर लगाती तो हैं लेकिन कैमिकल वाला सिंदूर लगाती हैं. जबकि यह धार्मिक दृष्टिकोण से तो हानिकारक हैं ही इसके साथ ही यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गलत हैं. मांग में सिंदूर लगाना हमारे अनेक रीति – रिवाजों में से एक हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार मांग में सिंदूर लगाने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण हैं. जिनकी विवेचना नीचे की गई हैं –

वैज्ञानिकों के अनुसार मांग में सिंदूर लगाने का सम्बन्ध महिला के पूरे शरीर से हैं. विवाहित स्त्रियाँ हमेशा अपनी मांग में सिंदूर मस्तिष्क के बीच में भरती हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार महिलाओं के मस्तिष्क में इस स्थान पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथि स्थित होती हैं. जिसे ब्रहमरंध्र कहा जाता हैं. ब्रहमरंध्र ग्रंथि मस्तिष्क की एक बहुत ही संवेदनशील ग्रंथि होती हैं. यह ग्रंथि महिला के मस्तिष्क के अग्र भाग से शुरू होती हैं तथा मस्तिष्क के बीच में ख़त्म होती हैं. मस्तिष्क के इस स्थान में ही विवाहित स्त्रियाँ सिंदूर लगाती हैं.ब्रहमरंध्र ग्रंथि के शुरू से लेकर अंत तक इसलिए सिंदूर लगाया जाता हैं. क्योंकि सिंदूर में एक पारा नामक धातु पाया जाता हैं. जो ब्रहमरंध्र ग्रंथि के लिए एक बेहद ही प्रभावशाली धातु सिद्ध होता हैं. ऐसा माना जाता हैं कि पारा नामक धातु महिलाओं के मस्तिष्क के तनाव को कम करता हैं तथा इस धातु के कारण ही महिलाओं का मस्तिष्क हमेशाचैतन्य अवस्था में रहता  है

इसके अलावा वैज्ञानिकों का मानना हैं कि जब किसी लड़की का विवाह होता हैं तो उस पर विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारियों का दबाव एक साथ आता हैं. जिनका प्रभाव सीधा उस लड़की के मस्तिष्क पर पड़ता हैं. इस तनाव के करण ही विवाह के कुछ समय बाद से ही महिला सिर में दर्द, अनिद्रा जैसे अन्य मस्तिष्क से जुड़े रोगों से ग्रस्त रहती हैं. सिंदूर में मिश्रित पारा धातु एक तरल पदार्थ हैं. जो की मस्तिष्क के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता हैं. पारा इन सभी रोगों से महिलाओं को मुक्त रखने में बहुत ही सहायक होता हैं. इसलिए महिलाओं को विवाह होने के बाद अपनी मांग में सिंदूर अवश्य लगाना चाहिए

हिन्दू धर्म में सिंदूर का बहुत खास महत्व है। यह एक महिला के लिए उसके सुहाग की निशानी होती है। हम जब भी कभी किसी शादीशुदा औरत को देखते हैं तो उसके माथे पर सिंदूर जरूर लगा दिखता है। एक शादीशुदा औरत को सिंदूर के बिना अधूरा माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में सिंदूर का आध्यात्मिक महत्व माना जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सिंदूर लगाने के पीछे के कारणों को जानने का प्रयास किया है। इस सिंदूर को ना केवल शादी के प्रतीक के रूप में लगाया जाता है बल्कि इसे लगाने के पीछे और भी कई कारण हैं जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

परंपरागत रूप से यह पति की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए लगाया जाता है
हिंदू समाज में जब भी किसी लड़की की शादी होती हैं तो उसके लिए सिंदूर लगाना बहुत जरूरी होता है। माना जाता है कि शादीशुदा महिला का सिंदूर लगाना उसके पति की लंबी उम्र की कामना का प्रतीक होता है। यही वजह है कि विधवा औरतें अपनी मांग में सिंदूर नहीं लगती हैं।

लाल रंग शक्ति का प्रतीक माना जाता है
भारतीय पौराणिक कथाओं में लाल रंग के माध्यम से सती और पार्वती की ऊर्जा को व्यक्त किया गया है। सती को हिन्दू समाज में एक आदर्श पत्नी के रूप में माना जाता है। जो अपने पति के खातिर अपने जीवन का त्याग सकती है। हिंदुओं का मानना है कि सिंदूर लगाने से देवी पार्वती ‘अखंड सौभागयवती’ होने का आशीर्वाद देती हैं।

सिंदूर रक्तचाप को नियंत्रित करता है
सिंदूर के माध्यम से रक्तचाप भी नियंत्रित रहता है। सिंदूर के माध्यम से महिलाओं की पिट्यूटरी ग्रंथियां स्थिर रहती हैं।

सिंदूर औरत को शांत और स्वस्थ रखने में मदद करता है
वैज्ञानिक दृष्टि से अगर देखें तो एक औरत जब सिंदूर लगाती है तो वह सिंदूर उसके मन को शांत रखने में मदद करता है। इतना ही नहीं सिंदूर से उसका स्वास्थ भी अच्छा बना रहता है।

सिंदूर देवी लक्ष्मी के लिए सम्मान का प्रतीक माना जाता है
यह कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर पांच स्थानों पर रहती हैं और उन्हें हिन्दू समाज में सिर पर स्थान दिया गया है। जिसके कराण हम माथे पर कुमकुम लगा कर उन्हें समान देते हैं। देवी लक्ष्मी हमारे परिवार के लिए अच्छा भाग्य और धन लाने में मदद करती हैं।

यह महत्वपूर्ण होता है कि पति अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर लगाए
हिन्दू धर्म में नवरात्र और दीवाली जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों के दौरान पति के द्वारा अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह उनके एक साथ रहने का प्रतीक होता है और इससे वो काफी लंबे समय तक एक साथ रहते हैं।

क्यों रखते है शिखा ? क्या है इसकी वैज्ञानिकता

क्यों रखते है शिखा ? क्या है इसकी वैज्ञानिकता ?

Shikha (Choti) rakhne ke fayde (benefits) : हमारे देश भारत में प्राचीन काल से ही लोग सिर पे शिखा रखते आ रहे है ख़ास कर ब्राह्मण और गुरुजन। सिर पर शिखा रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को आर्यों की पहचान तक माना लिया गया। यदि आप ये सोचते है की शिखा केवल परम्परा और पहचान का प्रतिक है तो आप गलत है। सिर पर शिखा रखने के पीछे बहुत बड़ी वैज्ञानिकता है जिसे आधुनिक काल में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध भी किया जा चूका है।  आज हम इस लेख में सिर पर शिखा की वैज्ञानिक आधार पर विवेचना करेंगे जिससे आप जान सके की हज़ारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज ज्ञान विज्ञानं में हम से कितना आगे थे।

1. सर्वप्रमुख वैज्ञानिक कारण यह है कि शिखा वाला भाग, जिसके नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगहोँ(मुण्डन के समय यह स्थिति उत्पन्न होती है)की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण वातावरण से उष्मा व अन्यब्रह्माण्डिय विद्युत-चुम्बकी य तरंगोँ का मस्तिष्क से आदान प्रदान बड़ी ही सरलता से हो जाता है। और इस प्रकार शिखा न होने की स्थिति मेँ स्थानीय वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। लेकिन वैज्ञानिकतः मस्तिष्क को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है। जो शिखा न होने की स्थिति मेँ एकदम असम्भव है। क्योँकि शिखा(लगभग गोखुर के बराबर) इसताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को रोक देती है। आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणोँ से भलिभाँति परिचित है।

2. जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन कोनियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखाएक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।

3. आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यहनहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं,मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्सेमें होता है और आखिरी है सहस्राह चक्रजो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रणकरने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबावहोने से रक्त प्रवाह भी तेजरहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।

4. ऐसा भी है कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से बाहर निकलती है (मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए है दो आँखे, दो कान, दो नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुह )और दसवा द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र जो सिर में होता है , कहते है यदि प्राण इस चक्र से निकलते है तो साधक की मुक्ति निश्चत है.और सिर पर शिखा होने के कारणप्राण बड़ी आसानी से निकल जाते है. और मृत्यु हो जाने के बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसेहोते है जो आसानी से नहींनिकलते, इसलिए जब व्यक्ति को मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपनेआप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है यदि सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है.

5. शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है।  शिखा रखने से मनुष्य की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायुहोता है।

योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।  शिखा रखने से मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।