शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

श्री रामचंद्र कृपालु भजमन

श्री रामचंद्र कृपालु भजमन
श्री रामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणं
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं

कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरम
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं

भजु दीनबंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं
रघुनंद आनंद कंद कोसल चन्द्र दशरथ नन्दनं

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूशनम
आजानु भुजषर चाप धर संग्राम जित खर दूषणं

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं
मम ह्रदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनं

मनु जाहि राचेउ मिलही सो वर सहज सुन्दर सांवरो
करुना निधान सुजान सीलु सनेहू जानत रावरो

एही भाँती गौरी असीस सुनि सिय सहित हिय हर्षित अलि
तुलसी भवानी पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चलि

मानस से - भये प्रगट कृपाला

मानस से - भये प्रगट कृपाला
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा .
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ..

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार .
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ..

आरती दुर्गा माताजी की

आरती दुर्गा माताजी की

अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

तेरे भक्त जनो पर माता, भीर पडी है भारी माँ।
दानव दल पर टूट पडो माँ करके सिंह सवारी।
सौ-सौ सिंहो से बलशाली, है अष्ट भुजाओ वाली,
दुष्टो को पलमे संहारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

माँ बेटे का है इस जग मे बडा ही निर्मल नाता।
पूत - कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता ॥

सब पे करूणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियो के दुखडे निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

नही मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना माँ।
हम तो मांगे माँ तेरे मन मे, इक छोटा सा कोना ॥

सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली,
सतियो के सत को सवांरती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

चरण शरण मे खडे तुम्हारी, ले पूजा की थाली।
वरद हस्त सर पर रख दो,मॉ सकंट हरने वाली।
मॉ भर दो भक्ति रस प्याली,
अष्ट भुजाओ वाली, भक्तो के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

श्री दुर्गा जी की आरती

श्री दुर्गा जी की आरती

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥

तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥

आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥

तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥

राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वा†छाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥

दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥

तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥

सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥

तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥

मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥

हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥

निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!

सबके सुधी अहाँ लै छी जगदम्बे

सबके सुधी अहाँ लै छी हे जगदम्बे
हमरा किया विसरै छी हे -2

छी हम पुत्र अहींकेर जननी -2
से तऽ  अहाँ जनै छी हे -2
एहन निष्ठुर किए अहाँ भेलहुँ कनिको दृष्टि नहि दै छी हे-2
सभकेर सुधि अहाँ लै छी जगदम्बे
हमरा किए --------------

छन छन पल पल ध्यान करै छी -2
नाम अहींकेर जपै छी हे -2
रैनि-दिवस हम ठाढ़ रहै छी दर्शन बिनु तरसै छी हे -2
सभकेर सुधि अहाँ लै छी जगदम्बे
हमरा किया विसरै छी हे

छी जगदम्बा जग अवलम्बा -2
तारिणि तरणि बनै छी हे  -2
हमरा बेरि किए ने तकै छी हे अम्बे पापी जानि ठेलै छी हे -2
सभकेर सुधि अहाँ लै छी जगदम्बे
हमरा किया विसरै छी हे
सभकेर सुधि अहाँ लै छी जगदम्बे

तन्त्रोक्तं देवी सूक्तम्

तन्त्रोक्तं देवी सूक्तम् : माता का महा मंत्र
प्रस्तुत मंत्र देवी मां का सबसे आसान और प्रभावी मंत्र माना जाता है. समस्त देव गण माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र से माँ दुर्गा की स्तुति प्रार्थना करते हैं  । इस मंत्र से देवी दुर्गा का स्मरणकर प्रार्थना करने मात्र से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करती हैं। इस लिये ईश्वर में श्रद्धा विश्वास रखने वाले सभी मनुष्यों को देवी की शरण में जाकर निम्न मंत्र से देवी दुर्गा का स्मरणकर निर्मल हृदय से प्रार्थना करनी चाहिये।
देवा ऊचु:
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्॥1॥
अर्थात : देवता बोले- देवी को नमस्कार है, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है। हमलोग नियमपूर्वक जगदम्बा को नमस्कार करते हैं। ॥1॥
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रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै  नमो नम:। ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नम:॥2॥
अर्थात : रौद्रा को नमस्कार है। नित्या, गौरी एवं धात्री को बारम्बार नमस्कार है। ज्योत्स्नामयी, चन्द्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है। शरणागतों का कल्याण करने वाली वृद्धि एवं सिद्धिरूपा देवी को हम बारम्बार नमस्कार करते हैं। ॥2॥
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कल्याण्यै प्रणतां वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नम:। नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नम:॥3॥
अर्थात : नैर्ऋती (राक्षसों की लक्ष्मी), राजाओं की लक्ष्मी तथा शर्वाणी (शिवपत्‍‌नी) स्वरूपा आप जगदम्बा को बार-बार नमस्कार है। ॥3॥
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दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै। ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नम:॥4॥
अर्थात : दुर्गा, दुर्गपारा (दुर्गम संकट से पर उतारने वाली), सारा (सबकी सारभूता), सर्वकारिणी, ख्याति, कृष्णा और धूम्रादेवी को सर्वदा नमस्कार है। ॥4॥
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अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नम:। नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नम:॥5॥
अर्थात : अत्यन्त सौम्य तथा अत्यन्त रौद्ररूपा देवी को हम नमस्कार करते हैं, उन्हें हमारा बारम्बार प्रणाम है। जगत् की आधारभूता कृति देवी को बारम्बार नमस्कार है। ॥5॥
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या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥6॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में विष्णुमाया के नाम से कही जाती है, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥6॥
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या देवी सर्वभेतेषु चेतनेत्यभिधीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥7॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥7॥
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या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥8॥
जो देवी सब प्राणियों में बुद्धिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥8॥
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या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥9॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में निद्रारूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥9॥
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या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥10॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में क्षुधारूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥10॥
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या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥11॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में छायारूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥11॥
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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥12॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥12॥
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या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥13॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में तृष्णारूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥13॥
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या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥14॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में क्षान्ति (क्षमा) रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥14॥

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या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥15॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में जातिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥15॥
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या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥16॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में लज्जारूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥16॥
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या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥17॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में शान्तिरूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥17॥
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या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥18॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में श्रद्धारूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥18॥
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या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥19॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में कान्तिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥19॥
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या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥20॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मीरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥20॥
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या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥21॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में वृत्तिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥21॥
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या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥22॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में स्मृतिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥22॥
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या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥23॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में दयारूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥23॥
~*~*~*~

या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥24॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में तुष्टिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥24॥
~*~*~*~

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥25॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में मातारूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥25॥
~*~*~*~

या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥26॥
अर्थात : जो देवी सब प्राणियों में भ्रान्तिरूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥26॥
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इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या। भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नम:॥ 27॥
अर्थात : जो जीवों के इन्द्रियवर्ग की अधिष्ठात्री देवी एवं सब प्राणियों में सदा व्याप्त रहने वाली हैं उन व्याप्ति देवी को बारम्बार नमस्कार है। ॥27॥
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चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्व्याप्य स्थिता जगत्। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥28॥
अर्थात : जो देवी चैतन्यरूप से इस सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारम्बार नमस्कार है। ॥28॥
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स्तुता सुरै: पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:॥29॥

अर्थात : पूर्वकाल में अपने अभीष्ट की प्राप्ति होने से देवताओं ने जिनकी स्तुति की तथा देवराज इन्द्र ने बहुत दिनों तक जिनका सेवन किया, वह कल्याण की साधनभूत ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले। ॥29॥
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या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै-रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति न: सर्वापदो भक्ति विनम्रमूर्तिभि:॥30॥
अर्थात : उद्दण्ड दैत्यों से सताये हुए हम सभी देवता जिन परमेश्वरी को इस समय नमस्कार करते हैं तथा जो भक्ति से विनम्र पुरुषों द्वारा स्मरण की जाने पर तत्काल ही सम्पूर्ण विपत्तियों का नाश कर देती हैं, वे जगदम्बा हमार संकट दूर करें। ॥30॥

सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्

सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ‌॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्‌ ॥२॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌ ॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।
पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत्‌ कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥ ४॥

अथ मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा

॥ इति मंत्रः॥

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ ४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि॥ ५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
॥फल श्रुति॥

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्‌।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

। इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ।

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निस दिन ध्यावत
हरि ब्रह्मा शिवजी, जय अम्बे गौरी

माँग सिन्दूर विराजत टीको मृगमद को, मैया टिको मृगमद को
उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको, जय अम्बे गौरी

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे, मैया रक्ताम्बर साजे
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे, जय अम्बे गौरी

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्र धारी, मैया खड्ग खप्र धारी
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी, जय अम्बे गौरी

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती, मैया नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति, जय अम्बे गौरी

शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर घाती, मैया महिषासुर घाती
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती, जय अम्बे गौरी

चण्ड मुण्डा संघारे, शोणित बीज हरे, मैया शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे, जय अम्बे गौरी

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी, मैया तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी, जय अम्बे गौरी

चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों, मैया नृत्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू, जय अम्बे गौरी

तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता, मैया तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता, जय अम्बे गौरी

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी, मैया वर मुद्रा धारी
मन वाँछित फल पावत देवत नर नारी, जय अम्बे गौरी

कन्चन थाल विराजत अगर कपूर बाती, मैया अगर कपूर बाती
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती, जय अम्बे गौरी

माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे, मैया जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे, जय अम्बे गौरी
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बुधवार, 13 अप्रैल 2016

अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्

अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥१॥ विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत्क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥२॥ पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥३॥ जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥४॥ परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पच्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥५॥ श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥६॥ चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥७॥
न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ॥८॥ नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥९॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥१०॥
जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परावृतं न हि माता समुपेक्षते सुतम् ॥११॥ मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥१२॥
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्