छठम दिन क पूजा
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गंगा क कथा
राजा सगर क दु टा स्त्री वेदर्भी आ शैव्या I शैव्या क पुता असमंजस मुदा वेदर्भी कुनु संतान नहि छेलनि I ओ संतान हेतु सौ वर्ष तक महादेव क तपस्या केलैथ त हुनका संतान क नाम पर एकटा लोथ क जन्म भेलनि त ओ महादेव क कानि क स्मरण केलैथ I महादेव ब्राह्मण क रूप धरि अयलाह आ ओहि लोथ के साठि हजार खंड क सब के तौला में तेल में ध राखि देलखिन I थोङे दिन बाद ओहि सं साठि हजार सुन्दर बालक भ गेल I
राजा समर ९९ टा अश्वमेघ यज्ञ क बाद सौ वां क तैयारी में लागल छलैथ मुदा इन्द्र नहि चाहैत छलैथ कि इ यज्ञ पूरा होय कियक त सौवा पूरा भेला पर ओ शतक्रतु इन्द्र भ जेता ,तेँ ओ विघ्न पैदा करैत रहैत छलैथ I
अश्वमेध क घोङा छोरल गेल जकर रखवाङ हुन कर साठि हजार पुत्र छलैथ I इन्द्र घोङा छल सं चोरा क भागलैथ , हुनका पाछू पाछू साठियो हजार पुत्र पृथिवी कोङैत आगु बढ़लाह त घोङा क कपिलमुनि क आश्रम में बांधल देखलखिन I सगर पुत्र मुनि क चोर बुछि हुनका दिस ज्यो दौङलखिन त मुनि क ध्यान टूटि गेलनि आ हुनकर क्रुद्ध दृष्टी सं सब सगर पुत्र भस्म भ गेला I राजा क यज्ञ अपूर्ण रही गेल ,आ ओ शोकाकुल मरि गेला I अपमृत्यु क प्राप्त राजकुमार सब के सदगति क जखन उपाय पुँछल गेल त सब कहलखिन जे से तखने संभव जँ गंगा हुनकर सभक अस्थि क स्पर्श करति I गंगा क धरती पर अनवा लेल असमंजस तपस्या करैत करैत मरि गेला I ओकर बाद हुनकर बेटा दिलीप आ फेर दिलीप क बेटा अंशुमान सेहो तपस्या करैत मरि गेला I तखन हुनकर बेटा भागीरथ क तपस्या सं प्रसन्न भय विष्णु गंगा के बैकुंठ सं धरती पर अनबाक अनुमति देलखिन I चुकि गंगा यकायक धरती पर उतरति त धरती रसातल में चलि जायत ते पहिले शिव अपना माथ पर उतारि जटा में समेटलखिन I तकर बाद गंगा हिमालय क दह्बैत बिदा भेलि I जह्नु ऋषि क आश्रम दहा लगलैन त ओ उठा गंगा क पीवि गेलखिन I भगीरथ ऋषि के सेवा कर लगला जाहि सं प्रसन्न भय एही शर्त पर गंगा के छोङलखिन कि गंगा हुनकर बेटी कहोती तेँ गंगा जाह्नवी कहेली I आगु आगु भागीरथ आ पाछु पाछु गंगा ,गंगा द्वार सं होइत हरिद्वार फेर हुनकर पितर क्र भस्म सब के धोइत पखारैत अंत में ओहि विशाल खाधि में खसलीह जकरा सगर पुत्र खुन्ने छलैथ आ ओ सागर कहाएल .एही प्रकारे गंगा धरती पर एली I
श्री गौरी क जन्म
सती क मृत्यु क बाद महादेव संसार सं विरक्त भय निर्जन स्थान में जा तपस्या में लीन भय गेला I एही बीच राक्षस सब हक उपद्रव बहुत बढि गेल I ओहि राक्षस सब में तारकासुर नामक राक्षस अपना तपस्या सं प्रस्सन कय ब्रह्मा सं वरदान मंगलक कि हम अमर भय जाई ,जाहि पर ब्रह्मा राजी नई भेलखिन त ओ दोसर वरदान मंगलक कि ओकर मृत्यु मात्र महादेव के औरस पुत्र क हाथे हूअए I ब्रह्मा तखन मानि गेलखिन आ ओकरा तथास्तु कहि देलखिन I इ वरदान मंगवा में तारकासुर के इ उद्देश्य छल कि महादेव क स्त्री त निस्संतान मरि गेल छैथ आ महादेव संसार सं विरक्त भय गेल छैथ तें हुनकर दोसर विवाह असंभव I अर्थात ओ अमर रही जायत I मृत्यु भयहिन तारकासुर सब देवता सब के स्वर्ग सं भगा अपने राजा बनि गेल I जप तप बंद करवा देलक ,मुनि सब के सतबए लागल,स्त्री सब के अपहरण करय लागल I ओकर त्राहि त्राहि सं तंग आवि क सब लोक ब्रह्मा लग गेलैथ त ब्रह्मा कहलखिन जे आँहा सब महाशक्ति दुर्गा क आराधाना करू त ओ गौरी रूप में जन्म लेति आ जखन हुनकर और महादेव क विवाह सं पुत्र ह्र्तैन त ओहि बालक हाथे तारकासुर क वध हैत I तखन सब गोटा माँ दुर्गा क आराधना करय लगला जाहि सं प्रस्सन भय दुर्गा क जन्म हिमालय क बेटी क रूप में भेलनि II
काम-दहन
एक दिन नारद मुनि हिमालय क ओहिठाम अयलाह आ हिमालय क कहलखिन जे अहाँ क पुत्री गौरी क हाथ में महादेव संग विवाह लिखल छैन , आ अखन महादेव अहिं क शिखर पर तपस्या क रहल छैथ तेँ अहाँ गौरी के महादेव क सेवा में लगा दिऔन जाहि सं ओ प्रस्सन भय अहाँ क बेटी सं विवाह क लेता I हिमालय नित्य गौरी क दु गोट सखि संगे महादेव क सेवा में पठबए लगलखिन I देवतागण महादेव क तपस्या भंग कय हुनकर ध्यान गौरी दिस आकृष्ट करवा हेतु कामदेव क कहलखिन I कामदेव अपन मित्र वसंत आ पत्नी रति संगे ओतय पँहूचि गेलैथ I सम्पूर्ण हिमालय वसंत क महिमा सं सुंगंधित आ आकर्षक भई गेल I परम सुंदरी गौरी जखन महादेव क पूजा क हेतु पुष्प श्रृंगार कय महदेव क आगु ठाढ़ भेलखिन तखने कामदेव महादेव क ऊपर अपन वाण चला देलखिन I महादेव क तन्द्रा टुटि गेलैन आ ओ अपना समक्ष गौरी क देख हुनका पर आसक्त भैय कामातुर भय गेला I परन्तु तत् क्षण महादेव संभालि गेला आ अपन क्षण में उपजल यही भावना क कारण ताक लगला त झाङी में नुकायल कामदेव क देखलखिन Iमहादेव क क्रोध सं हुनकर तेसर नेत्र खुलि गेल आ ज्यो ओ कामदेव दिस तकलखिन ,कामदेव भस्म भ गेला I रति अपना स्वामी क दशा देख विलाप करय लागलि त सब देवता सब महादेव क कहलखि जे-एहि में कामदेव क कुनु गलति नहि छल अपितु संसार क तारकासुर सं बचेवा हेतु अहाँ क तपस्या सं उठेनए जरूरी छल I तखन महादेव कहलखिन जे कामदेव मरला नइ हुनकर शरीर जरलनि I रति अखन समुद्र क राक्षस शम्बर संगे जा क रहति आ जखन द्वापर में कृष्ण क बेटा प्रदुम्म क उठा क शम्बर राक्षस अपना नगर ल जायत त रति क ओतहि प्रदुम्म क शरीर में कामदेव भेटतनि I आ जखन प्रदुम्म पैघ भ जेता त शम्बर क मारि रति क द्वारिका ल जा हुनका सं विवाह करता I तखन रति कामदेव सं मिलन क आशा में शम्बर राक्षस क ओहिठाम लेल विदा भेलि II
बाचो बीनी
“पुरैनिक पत्ता ,झिलमिल लत्ता ताहि चढ़ी बैसली बिसहरी माता I
हाथ सुपारी खोईंछा पान ,बिसहरी माता करती शुभ कल्याण “
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